What if our ancestors are wrong? / क्या होगा अगर हमारे पूर्वज गलत हों?
The
Prophets are sent to clear all kind of doubts about the existence of God! They
do not speak for themselves or deceive us. They
speak according to the Message of Inspiration from God. It
is not they, but it is our own God Who invites us to save us by His Grace.
But
the unbelievers argue illogically in a circle. If the Prophet speaks of God,
they say: “You are only a man!” He says “But I speak of God!” They reply, “Oh
No! Our ancestral ways of worship are good enough for us!” But, “What
if your ancestors are wrong?” “What authority you have for saying so?” “My
authority is from God!” “But you are only a man” and they start the futile
circle again.
They
argue merely as an amusement. Their
chief weapon is physical force as they only believe in materialism. They
think that threats of force will put down the believers. They offer a choice
between exile or violence against conformity to their standards of evil.
But
faith is not to be cowed down or suppressed by force. Its strength lies in God,
and it receives assurance that violence will perish and good must stand to be
established. In
fact, the faithful always inherited the earth in the past while the evil ones
were blotted out and this is clear sign for all those who want to
Think
again…
Their
messengers said: “What! Can there be a doubt about Allah, the Creator of the
heavens and the earth?” It is He Who calls you, that He may forgive you your
sins and give you respite for a term appointed!” They said: Ah! you are no more
than human, like us! you wish to turn us away from the (gods) our fathers used
to worship: then bring us some clear authority.” Their messengers said to them:
“True, we are no more than human like you, but Allah bestows His Grace to whom
He Wills of His slaves. It is not for us to bring you an authority except by
the Permission of Allah. And in Allah (Alone) let the believers put their
trust.” (Al-Qur’an Ch.14 Ver. 10-11)
क्या होगा अगर हमारे
पूर्वज गलत हों?
भगवान के अस्तित्व के बारे में सभी प्रकार के संदेह को
दूर करने के लिए पैगंबर भेजे जाते हैं! वे
खुद से नही बोलते, ना हमको धोखा देते हैं। वे ईश्वर की प्रेरणा के अनुसार बोलते हैं। यह वे नहीं, बल्कि यह
हमारा अपना ईश्वर है जो हमें हमारे पापों से बचाने के लिए
आमंत्रित करता है।
लेकिन काफ़िर एक गोल दायरे में बहस करते
हैं। यदि पैगंबर भगवान की बात करते हैं,
तो वे कहते हैं: "आप केवल एक आदमी हैं!", "लेकिन मैं भगवान की तरफ से बात करता हूं!"। "ओह नहीं! पूजा के लिए हमारे
पुश्तैनी तरीके ही काफी हैं!
”लेकिन,“ क्या होगा अगर आपके पूर्वज गलत हों?" “ऐसा
कहने के लिए आपके पास क्या अधिकार है?” “मेरा अधिकार भगवान से है!” “लेकिन आप तो केवल एक इंसान हैं!” वे व्यर्थ चक्र फिर से शुरू करते हैं।
वे केवल एक मनोरंजन के रूप में बहस करते हैं। उनका मुख्य हथियार बल है क्योंकि वे केवल दुनयावी ताक़त में विश्वास करते हैं। उन्हें
लगता है कि बल की धमकी ईमानवालों को रोक देगी। वे कहते हैं या यहाँ से निकल जाओ या हमसे लड़ो या फिर हमारे बुराई के रास्ते पर चलो।
लेकिन ईमान को बलपूर्वक दबाया नहीं जा सकता। इसका आश्वासन और ताकत भगवान में निहित है, और हिंसा नष्ट होगी और अच्छाई स्थापित होगी। वास्तव
में, ईमानवालों को हमेशा अतीत में दुनिया की विरासत मिली है, जबकि बुरे लोगों को तबाह किया गया और यह उन सभी के लिए
स्पष्ट संकेत है जो चाहते हैं
फिर से विचार करना…
उनके पैग़म्बरों ने कहा: “क्या! क्या आकाश और पृथ्वी के निर्माता अल्लाह के
बारे में कोई संदेह हो सकता है? "वही है जो आपको अपनी ओर बुलाता है, कि वह आपके गुनाहों को माफ कर सके और नियुक्त समय के लिए आपको मोहलत दे!" उन्होंने कहा: आह! आप हम जैसे मनुष्यों से अधिक कुछ नहीं! आप हमें हमारे (देवताओं) से
दूर करने की इच्छा रखते हैं, जिनको हमारे पूर्वज पूजा करते थे: तुम कुछ स्पष्ट
अधिकार लाओ।” उनके पैगम्बरों ने उनसे कहा: “सच है, हम तुम्हारे जैसे इंसानों से
ज्यादा नहीं हैं, लेकिन अल्लाह अपने बन्दों में से जिसे चाहता है अपनी रहमत देता है। अल्लाह की अनुमति के अलावा कोई अधिकार जताना हमारे बस में नही। और (अकेले) अल्लाह पर ही ईमानवालों को अपना भरोसा रखना चाहिए।" (अल-कुरआन सूरा 14 आयात 10-11)
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