How would you reconcile?
/ आप अपने आप को कैसे समझाएंगे?
If there is no hereafter (next eternal life), how could you
reconcile the inequalities of this world?
Would not the un-believers be right in acting as if all creation and our
life is futile?
But there is a hereafter and God will not treat the Good and Evil
alike. He is just and will fully restore the balance disturbed in this life.
The knowledge of the hereafter Revealed through His Messengers is
not a mere chance or a haphazard thing. It is a real blessing – among the
greatest that God has bestowed on mankind. By believing it, in an earnest
spirit, man may learn of himself, and his relation to nature around him and his
relation to God – the Author of all.
Men of understanding may, by its help, resolve all genuine doubts
that may there be in their minds and learn the truth about this life and the
next life to come. This would help them to have complete trust in God and tune
their will to His Universal Will – for that is the meaning of Islam to tune
your will with the Will of God.
Think again…
Shall We treat those who believe and work deeds of righteousness,
the same as those who do mischief on earth? Shall We treat those who guard
against evil, the same as those who turn aside from the right? (This is) a Book
(the Qur’aan) which We have sent down to you, full of blessings that they may
ponder on its Verses, and that men of understanding may receive admonition.
(Al-Qur’aan Ch.38 Ver.28-29)
आप अपने आप को कैसे समझाएंगे?
यदि इस जीवन के बाद (अगला अनन्त जीवन) नहीं है, तो आप इस दुनिया
की नाइंसाफियों
को कैसे सुलझाएंगे? क्या काफिरों का ये केहना सही नहीं होगा कि सारी सृष्टि और
हमारे जीवन का कोई अर्थ नही ?
लेकिन इसके बाद भी जीवन है
और भगवान अच्छे और बुरे के साथ एक जैसा व्यवहार
नहीं करेंगें। वह
इंसाफ करने वाला
है और इस जीवन के असंतुलन को पूरी तरह से सही करेगा।
अकाल जीवन
की बात जो उसने अपने दूतों
के माध्यम से हमे बताई है, केवल एक घृणित
बात नहीं है। यह एक वास्तविक सत्य और वरदान
है - जो परमेश्वर ने मानव जाति को
दिया है। इसपर विश्वास करते हुए, एक पवित्र मनुष्य, स्वयं के बारे में सीख सकता है, और अपने चारों ओर प्रकृति और भगवान के साथ अपने संबंध को जान सकता
है।
समझदार लोग, इसकी मदद से, उन सभी वास्तविक संदेहों
को हल कर सकते हैं जो उनके दिमाग में हों और इस जीवन और आने वाले अगले जीवन के बारे में सच्चाई जान सकते हैं।
इससे उन्हें ईश्वर पर पूरा भरोसा रखने में मदद मिलेगी और वह अपनी इच्छा को उसकी सार्वभौमिक इच्छा के अनुरूप बना सकेगें - और यही
इस्लाम का अर्थ है, ईश्वर की इच्छा के आगे अपनी इच्छा को समर्पित
करना।
फिर से विचार करें…
क्या हम उन लोगों के साथ एक जैसा
व्यवहार करेंगें
जो ईमान लाते
हैं और नैक काम करते हैं और वो जो धरती पर कुकर्म करते हैं? क्या हम उन लोगों के साथ एक जैसा व्यवहार करेंगें जो बुराई से ख़ुद को
रोकते हैं और वो जो अच्छाई से अलग हो जाते हैं? (यह) एक पुस्तक (कुरआन) है, जिसे हमने आपके लिए
भेजा है, रहमत
से भरी हुई है, कि लोग इसकी
आयतों पर विचार करें और अक्ल वाले नासियत हासिल
करें। (अल-कुरआन सूरा 38 आयात 28-29)
Comments
Post a Comment