What about
his real journey? / उनकी वास्तविक यात्रा का क्या?
India’s
former Finance Minister and senior Bharatiya Janata Party leader Arun Jaitley
breathed his last at the All India Institute of Medical Sciences in New Delhi
on Saturday 24th August 2019. He was 66 and now everyone is talking
about his road from a common man to the Finance Minister of India, but no one
seems to be concerned about his real
journey i.e. his road from the Finance Minister of India to his death bed.
A dying man’s friends, relatives, and companions may be sitting
around him and quite close to him in his last moments, but God is nearer still
at all times, for He is nearer to man’s own jugular vein, and
one of God’s attribute is “Ever Near”.
If we do not believe in Revelation of Qurán and a future Judgment,
and claim to do what we like and be independent of God, how is it that
we cannot call back a dying man’s soul to his body when we all are there with
him at his death – bed?
But, we are not independent or free of Judgment. There is a Day of
Account, when we will be Judged by our deeds in this life – by
the attention we paid to the call of the Prophets – by the faith we had in
Oneness of God and then; there will be no time either to repent or to
Think again…
Then why do you not (intervene) when (the soul of the dying man)
reaches the throat? – And you (sit) while looking on – But We are nearer to him
than you, but you see not – Then why do you not – if you are exempt from
(future) account – Bring back the soul (to its body) if you are truthful (in
your claim of Independence)? (Al-Qur’an Ch. 56 Ver. 83 – 87)
उनकी वास्तविक
यात्रा का क्या?
भारत के पूर्व वित्त मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के
वरिष्ठ नेता अरुण जेटली ने शनिवार 24 अगस्त 2019 को नई दिल्ली में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान
संस्थान में अंतिम सांस ली। वह 66 वर्ष के थे और अब हर कोई उनके
एक आम आदमी से लेकर वित्तमंत्री बनने
तक के सफर
के बारे में बात कर रहा है, लेकिन लगता है
कि किसी को
उनकी वास्तविक
यात्रा की परवाह नही।
भारत के वित्त
मंत्री से मृत्यु तक के
सफर का क्या?
एक मरते हुए आदमी के दोस्त, रिश्तेदार, और साथी उसके
आस-पास बैठे होते हैं और उसके आखिरी पलों में उसके काफी करीब
होते हैं, लेकिन ईश्वर हर समय उससे कहीं
ज़्यादा निकट है, क्योंकि वह इंसान की
गर्दन की नस
से ज़्यादा उससे
करीब है, और ईश्वर की खूबियों
में से एक है
"हमेशा क़रीब
रहने वाला ”।
अगर हम कुरान और भविष्य की जवाबदेही पर
विश्वास नहीं करते हैं, और हम जो पसंद हो करते हैं और भगवान से स्वतंत्र
होने का दावा करते हैं, तो यह कैसे है कि हम एक मरते हुए आदमी की आत्मा को उसके शरीर
में वापस नहीं बुला सकते जबकी हम सभी उसके साथ होते
हैं उसकी मौत
के वक़्त?
लेकिन, हम स्वतंत्र नहीं हैं या जवाबदेही से
मुक्त नहीं हैं। एक दिन हिसाब का
है, जब हमे इस जीवन में अपने कर्मों के
द्वारा न्याय मिलेगा- पैगंबरों की पुकार पर ध्यान देने
द्वारा - परमेश्वर की एकता में विश्वास करने
द्वारा और फिर; हमारे पास
वक़्त नही बचेगा
पश्चाताप करने
या पलटने या
फिर से विचार करने का...
तो तुम
(दखलंदाज़ी)
क्यों नहीं करते जब (मरने वाले की आत्मा) गले तक पहुँचती है? - और तुम (बैठे
हुए) देख रहे
होते हो - लेकिन हम तुम्हारे मुकाबले
उसके करीब हैं, लेकिन तुम्हे दिखाई
नही देते- फिर तुम
क्यों नहीं -
यदि (भविष्य के) हीसाब-किताब
से मुक्त हो - तो
आत्मा को वापस ले आते (उसके शरीर में) अगर सच्चे
हो (अपनी स्वतंत्रता के दावे में)? अल-कुरान
सूरा 56 आयात 83- 87
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