ईसा
का संदेश क्या था..?
यदि इस ब्रह्मांड के एक से अधिक मालिक होते, तो निश्चित रूप
से सब कुछ अस्तव्यस्त हो जाता।
लेकिन, हमें अपने आस-पास कोई गड़बड़ी दिखाई नहीं देती, वास्तव में प्रकृति
की सभी शक्तियों के पीछे एक ऐसा सामंजस्य कानून नज़र आता है, कि कोई भी सही सोच रखने वाला व्यक्ति सभी शक्तिशाली कार्यों के पीछे
एक शक्तिशाली निर्माता की कमान देखने में विफल नहीं हो सकता।
हमारी अक्ल एक दूसरे के विरोधी देवी देवताओं के विचार को
स्वीकार करने से इनकार करती है, और प्रकृति में एक एकत्र निर्यन्तरण आज्ञा की ओर इशारा करती है, जो की हमारे निर्माता की एकता को
दर्शाता है। यह न केवल पैगंबर मुहम्मद (शांति हो उन पर)
का संदेश है, बल्कि उन सभी पैगंबरों का संदेश है जो उनसे पहले आए थे। हर युग में हर पैगंबर को दिया
गया संदेश एक और केवल ईश्वर पर विश्वास करना था जो सृष्टि के मूल आधार
के साथ पुष्टि करता है जिस पर यह ब्रह्मांड चलता है।
वे अल्लाह का आदेश प्राप्त करने से
पहले कभी भी कुछ नहीं कहते थे, और अपने कार्यो को उसी के आदेश अनुसार चलते थे। यही संदेश ईसा (शांति हो उन पर) ने भी दिया, जैसा के सेंट जॉन (xii, 49-50)
के सुसमाचार में बताया गया है: “मैं स्वयं की बात नहीं करता: परन्तु पिता की जिन्होंने मुझे भेजा। वो मुझे आदेश देता है कि
मुझे क्या कहना चाहिए: और मुझे क्या बोलना चाहिए। और मुझे पता है कि उनकी आज्ञा अनंत जीवन है; जो भी मैं बोलता हूँ, पिता ने मुझसे कहा, इसलिए मैं बोलता हूँ”।
अगर हम "पिता" शब्द को सही से समझें
तो यहाँ इसका अर्थ "रब्ब" है जैसा कि कुरआन में है यानि के खिलाने वाला और पालने वाला, न कि बाप या जनने वाला। पैगंबर उसके सेवक से अधिक कुछ भी नहीं हैं: उन्हें सम्मान में ऊंचा उठाया
जाता है, और इसलिए वे हमारे सर्वोच्च सम्मान के हकदार हैं, लेकिन हमारी पूजा के नही। ईसा (शांति हो उन पर) की कहानी में
चमत्कार "अल्लाह की इच्छा और शक्ति द्वारा" थे। वे अल्लाह के चमत्कार थे,
जीसस के नहीं।
उसके सभी प्राणी उसपर निर्भर और उसके प्रति जवाबदेह हैं और वह प्रभु है
- सभी से स्वतंत्र।
विभिन्न प्रकार के झूठे देवता, जिन्हें
लोग समय-समय पर कल्पना करते रहे और उनकी पूजा करते रहे, चाहे वे पैग़म्बर हों, कोई देवता या स्थानीय देव
पुरुष हों, या मूर्तियाँ हों या पशु हों या पेड़ हों या प्रकृति की शक्तियाँ हों,
इनका खुदाओं के रूप में कोई अस्तित्व नहीं है सिवाय उसके जो कि उनके भक्त उन्हें देते हैं।
आत्म - सहायक जीवन केवल अल्लाह में है - एक - सच्चा - अनन्त भगवान।
फिर से विचार करें…
ज़मीन-ओ-आसमान में अगर अल्लाह के
अलावा और ख़ुदा होते, तो
वास्तव में दोनों कब के बर्बाद
हो गए होते। बुलंद है अल्लाह,
अर्श का मालिक, तो जो बातें ये लोग अपने जी से (उसके साथी होने के बारे में) घड़तें हैं उन तमाम ऐबों से वो पाक व पाकीज़ा है। जो कुछ वह करता है उसकी पूछगछ नहीं हो सकती। (हाँ) और उन लोगों से पूछताछ होगी क्या उन लोगों ने खुदा को छोड़कर कुछ और माबूद बना रखे
हैं (ऐ रसूल) तुम कहो कि भला अपनी दलील तो पेश करो, ये इस्लाम ही संदेश है उन पैग़म्बरों का जो मेरे साथ आये और जो मुझ से पहले थे। बल्कि उनमें से अक्सर तो हक़ (बात) को तो जानते ही नहीं तो ये लोग मुँह फेर लेते हैं और (ऐ रसूल) हमने तुमसे पहले जब
कभी कोई रसूल भेजा तो उसके पास ''वही'' भेजते रहे कि बस हमारे सिवा कोई माबूद क़ाबिले
परसतिश नहीं तो सिर्फ मेरी ही इबादत किया करो। (क़ुरआन सूरा 21 आयात 22-25)
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