भगवान के साथ सबसे बड़ा दुर्व्यवहार क्या है? / What’s
the Biggest Abuse to God?
भगवान का बेटे को जन्म देना सिर्फ शब्दों या विचारों का
हैरफ़ेर नहीं है। यह सर्वशक्तिमान के लिए सबसे बड़ा
दुर्व्यवहार है, क्योंकि यह हमारे निर्माता को जानवर के स्तर पर ले आता है। यदि इसे प्रायश्चित के झूठे सिद्धांत के साथ मिश्रित किया जाए, यानी ईसा मसीह (सलामती हो उन पर) के सूली चढ़ने के वजह से मानव जाति के पाप क्षमा कर दिए गए, तो यह हमारे सभी
नैतिक और आध्यात्मिक क्रम का विनाश है।
क्योंकि यह हमारी व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी के
साथ-साथ भगवान के सर्वोच्च न्याय की अस्वीकृति है और कुरान इसकी
सबसे मजबूत संभव शब्दों में निंदा करता है। प्रत्येक जीव भगवान के प्यार और देखभाल
के योग्य है और उसे अपने भगवान के
सामने न्याय और दया के सिंहासन पर अपनी व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी के साथ खड़ा होना होगा।
दूसरी तरफ, ईश्वर इतना आत्मनिर्भर है कि उसे
बेटों या पसंदीदा या अपने परजीवी पैदा करने की आवश्यकता ही नहीं है, जैसा
कि हम मनुष्य करतें हैं । जब हम
कहते हैं कि वह सर्वशक्तिमान है इसका मतलब है कि, उसकी इच्छा पूरी करने के लिए उसे
कोई भी रोक नही सकता - उसके
फरिश्ते हमेशा उसके आदेशों का पालन करने के लिए त्यार खड़े होते हैं; तो वह खुद को जानवरों के स्तर तक क्यूँ गिराएगा जो के सम्भोग करतें हैं?
फिर से विचार करें…
और ये लोग कहते हैं: रहमान (अल्लाह) ने बेटा जना है (या औलाद या बच्चे) (यहूदी) लोग कहते हैं कि (अज़ीज़) ख़ुदा का बेटा है, और (ईसाई) लोग कहते हैं कि अल्लाह ने (ईसा) बेटा जना है और मुशरिक-ए-मक्का कहते हैं कि अल्लाह की बेटियाँ है (फरिश्ते वगैरा)। (ऐ रसूल) तुम कह दो कि तुमने इतनी बुरी बात अपनी तरफ से गढ़ी है की क़रीब है कि आसमान उससे फट पड़े और ज़मीन शिगाफता हो जाए और पहाड़ टुकड़े-टुकडे
होकर गिर पड़े इस बात से कि उन लोगों ने अर-रहमान की तरफ बेटा मनसूब किया है। अर-रेहमान अल्लाह की शान में ये किसी भी तरह शायाँ ही नहीं कि वह (किसी को अपना) बेटा बना ले। (अल-कुरान
सूरा 19 अयत 88-92)
What’s the Biggest Abuse to God?
The
belief in God begetting a son is not a question merely of words or a
speculative thought. It is the biggest abuse to the All-Mighty, for it lowers our Creator to
the level of an animal. If mixed with the false doctrine of vicarious atonement i.e.
forgiveness of mankind’s sins by the crucifixion of Jesus Christ (peace be upon
him), it amounts to destruction of all our moral and spiritual order.
For it
is a negation of our personal responsibility as well as of God’s Supreme
Justice, and is condemned in the strongest possible terms in the Qur’aan. Every
creature gets God’s love and cherishing care and will have to stand on the throne of
Justice and Mercy before his Lord on his or her own personal responsibility.
On the
other hand, God is so self-sufficient that He is in no need of having sons or
favourites or parasites, such as we associate with human beings. When we say He
is All-Mighty that means, nothing can stop Him to carry out His Will – His angels are always
standing by to obey His commands; then why would He lower Himself down to an
animal function of sex?
Think
again…
And
they say: “The Most Gracious (Allah) has begotten a son (or offspring or
children) [as the Jews say: ‘Uzair (Ezra) is the son of Allah, and the
Christians say that He has begotten a son [Esa (Jesus)], and the pagan Arabs
say He has begottan daughters (angels and others.)]!” Indeed you have put forth
a terrible evil thing! At it the skies are about to burst, the earth to split
asunder, and the mountains to fall down in utter ruin, that they should invoke
a son for (Allah) Most Gracious. For it is not suitable for (the Majesty of)
the Most Gracious (Allah) that He should beget a son. (Al-Qur’aan Sura. 19
Ayat. 88-92)
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