ये चुनने की स्वतंत्रता क्यों ?/Why this
freedom of Choice ?
अगर
भगवान की योजना इंसान को सीमित स्वतंत्रता या इच्छा शक्ति प्रदान करने की नहीं होती, तो वह हमे काफी
अलग बना सकता था, या हमे स्थायी जीवों में बदल सकता था,
शारीरिक रूप से, जैसा पेड़ों के साथ मामला है, या नैतिक और आध्यात्मिक गुणों में, लेकिन तब हमारी प्रगति या गिरावट की
कोई भी संभावना नहीं रहती।
तब इंसान उस ऊंचाई तक पहुंचने में असमर्थ होता जो अब
उसके लिए खुली है, या यदि वो कोई गलती करता है, तो पश्चाताप और दया के
द्वार से लौट कर फिर से अपनी प्रगति का मार्ग पा सकता है।
असल उदेशय उसकी मौलिक शुद्धता और निर्दोषता को बहाल
करना है जिसमें उसे बनाया गया है। सीमित
इच्छा शक्ति की वजह से आई बुराई को शिक्षा और शुद्धिकरण से समाप्त
करना है क्यूंकि इस इच्छा शक्ति और उद्देश्यों को शुद्ध करने के बाद, वह
किसी भी प्राणी के मुकाबले ज्यादा अधिक ऊंचाई तक पहुँच सकता है।
मनुष्य
को ये सभी विशेष अधिकार देने में अल्लाह की रहमत है, और मनुष्य को इन अधिकारों के साथ आने वाले
कर्तव्यों को पूरा करना चाहिए;
उसे महसूस कर लेना चाहिए कि महान सम्मान के साथ महान ज़िमेदारियाँ भी आतीं हैं इससे पहले के वक़्त न बचे के वे
फिर से
विचार करे…
और अगर
यह हमारी इच्छा होती, तो हम उन्हें अपने स्थान पर
(रहने वालों में) बदल
सकते थे; तो फिर वे आगे बढ़ने में असमर्थ होते, और न ही वे
वापस आ सकते थे (ग़लती के
बाद)। [अल-कुरान सूरा 36 आयात 67]
Why this
freedom of choice..?
If God’s
plan had been not to grant the limited freedom of Choice or will to men, He
could have created them quite differently, or could have transformed them into
stationary creatures, either in physical form as in the case of trees, or in
moral or spiritual qualities, but then there would have
been no possibility of either our progress or downfall.
Man
would then have been unable to reach the heights which are now open to him, or
if he goes wrong, to return through the door of repentance and mercy, and still
pursue the path of his progress.
The ultimate object is to restore him to the pristine purity and
innocence in which he was created. The Evil introduced by his possession of a
limited free-will should be eliminated by the education and purification of
man’s own will. For, with his will and motives purified, he is capable of much greater heights than a creature
not endowed with any free-will.
It is
God’s goodness to give man all these privileges, and man must shoulder all the
duties that go with them; he must realise that with
great honour comes great responsibilities, before it’s too late for him to
Think
again…
And if it had been Our
Will, We could have transformed them (to remain) in their places; then should
they have been unable to move about, nor could they have returned (after
error). [Al-Qur’aan Sura. 36 Ayat. 67]
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