क्यों भगवान प्रकट नहीं होता है हमारे लिए?
क्यों नहीं भगवान बस दिखाई देते और हम उन पर विश्वास कर लेंगे और एक बड़ा सवाल
हल हो जायेगा आसानी से। "ओह हाँ! हम विश्वास कर लेंगे अगर वह प्रकट होता है हमारे
सामने अपनी महिमा के साथ!"
इस प्रकार के सभी बहाने बनाये जाते हैं उन लोगो के द्वारा जो विश्वास नही करना
चाहते भगवान पर। दूसरे शब्दों में, वे चाहते हैं, सवाल हल करना अपनी तरह से ना के परमेश्वर
की तरह से। ऐसा नही हो सकता। सभी निर्णय वह लेता है। सभी सवाल वापस उसके पास जाते हैं।
वह भगवान है - सबसे शक्तिशाली। हमे उसका इंतज़ार करना होगा उसके नियमों अनुसार ना के
वो इंतजार करेगा हमारा।
फिरौन और उसके लोगों को पैगंबर मूसा (शांति हो उन पर) ने दिखाए कई चिन्ह परमेश्वर
की महिमा के और कई स्पष्ट संकेत, यीशु (ईसा शांति हो उन पर) पैदा हुए चमत्कारिक ढंग
से बिना मानव पिता के पर फिर भी वे लोग अपनी इच्छाओं पर चले, और पसंद किया स्वयं का
तरीका और लोग ऐसा करते हैं हर युग में।
खुद भगवान हमसे बात करता है अपनी आसमानी किताबों के माध्यम से और अपनी सृष्टि
के निर्माण द्वारा। कोई भी व्यक्ति सच्चे मन से अगर सोच विचार करे तो यही गवाही देगी
उसकी आत्मा।
सभी उसके पैगम्बरों ने, क्या वह हो इब्राहीम, मूसा, ईसा या मुहम्मद (शांति
हो उन पर), संक्षेप में कहा कि भगवान एक है - और धर्म भी एक ही है (इस्लाम)। इस्लाम
का मतलब है झुकना परमेश्वर की इच्छा के आगे और इस प्रकार उन सब को जो ईमान रखते हैं
झुकना चाहिए परमेश्वर की इच्छा के आगे।
लेकिन जो लोग हैं सक्रिय भगवान के खिलाफ विद्रोह में और पाप कर रहे हैं खिलाफ
स्वयं अपनी रोशनी के - क्या दया की जा सकती है उन पर? अगर उन्हें लगता है कि वे हारा
देंगे परमेश्वर के ज्ञान को - तो नुकसान स्वयं अपना ही करेंगे। भगवान का न्याय सुनिश्चित
है, और जब यह आता है तो सख्त और स्पष्ट नजर आता है उन लोगों को जो अस्वीकारते हैं उसके
संकेतों को और फिर समय नही होगा उनके पास के वो
फिर से विचार कर सकें ...
क्या वे जब तक प्रतीक्षा करेंगे कि अल्लाह आ जाये उनके पास बादलों की छतरी
में फरिश्तों के साथ और सवाल इस प्रकार हल हो जाये ? लेकिन अल्लाह के पास जाते हैं
सभी सवाल वापस (निर्णय के लिए)। पूछना यहूदियों से के कितने स्पष्ट (संकेत) हमने भेजे
थे उनके लिये। लेकिन अगर कोई बाद अल्लाह के एहसान के, [त्यागता है धर्म अल्लाह का
(इस्लाम) और स्वीकार करता है kufr (अविश्वास)]
तो बेशक, अल्लाह सख्त है सजा देने में। (अल-क़ुरान 02:210-211)
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