कैसे एक मुस्लिम ने इस्लाम कुबूल किया ..!
हिन्दू-ईसाई संस्कृति के तहत भारत में पला-बड़ा हुआ। जन्मदिन, नया साल, क्रिसमस, दिवाली के साथ-साथ ईद और बकरी-ईद मनाते हुए हर शुक्रवार को पिता के साथ जुमा मस्जिद नमाज़ पढ़ने जाना। एक मुस्लिम परिवार में पैदा हुआ था, लेकिन फिर भी कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने तक, मैं इस्लाम से पूरी तरह अनजान था, इस्लाम शब्द का अर्थ भी नहीं जानता था। लेकिन एक दिन, मेरे पिता के एक दोस्त कुरान जो की अंग्रेजी अनुवाद के साथ था हमारे घर में भूल गये और मैंने इसे पढ़ना शुरू कर दिया। मैं खुद नहीं जानता था कि उसके बाद क्या होने वाला है।
जब मैंने खुली आंखों के साथ कुरान का अध्ययन किया, तो यह पूरी तरह से एक नई दुनिया थी, मेरे स्कूल और कॉलेज के दिनों में मैंने जो कुछ पढ़ा था, उसका जादू तीथर भितर हो गया था। यह अब तक अज्ञानता में भटकने जैसा था और ज्ञान की असली जड़ें तो अब हाथ आईं थी।
अल्लाह की रहमत से, मैं झूठ की दुनिया से सत्य की दुनिया में था - संदहे से वास्तविकताओं में - अंधेरे से रोशनी में।
मुझे कुरान के पवित्र पृष्ठों में मानवता के दुखों का समाधान मिल गया था। हेगल, मार्क्स, आदि जैसे महान विचारक बच्चे दिखाई दे रहे थे। बल्की मुझे उनपर दया आ रही थी के जिन गुथीयों को सुलझाने में सारा जीवन लगा दिया और फिर भी सुलझा नही पाए उन्हें इस पुस्तक ने केवल एक या दो आयतों के मास्टर स्ट्रोक में हल कर दिया।
कुरान ने मेरे चारों ओर सबकुछ इतना शुद्ध और सुंदर बना दिया कि मैंने इस दुनिया की वास्तविकताओं को समझना शुरू कर दिया और पूरे ब्रह्मांड के एकमात्र मास्टर के रूप में अल्लाह की पहचान निर्विवाद रूप से मेरे सामने आ गई। जब मैंने इस पुस्तक को खोला था तो मुझे इस्लाम के बारे में कुछ नहीं पता था, लेकिन जब मैंने इसे बंद किया - तो मैं खुद को पहचान चुका था।
मेरी तम्मना है कि इस्लाम की रोशनी से अपने दिल को भरकर सभी इंसान अंधेरे और अज्ञानता से बाहर निकल आएं; जिसके बिना वे हमेशा नुकसान में रहेंगे और कभी भी उस आनंद और शांति को प्राप्त करने में सक्षम नही होंगे; वो जीवन की वास्तविक खुशी जो केवल एक सच्चे भगवान की पूजा से मिल सकती है।
अंत में मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि कोई भी सच्चा व्यक्ति, जो ईमानदारी से कुरान को समझने की कोशिश करेगा, निश्चित रूप से इस्लाम स्वीकार करेगा। रोशनी की इस जड़ तक पहुंचने के बाद वह अंधेरे में कभी नहीं रह सकता जबकि उसे मौका दिया गया हो
फिर से विचार करने का...
अल्लाह शांति के घर (स्वर्ग) को बुलाता है, और सीधी राह दिखता है जिसे वह चाहे। (कुरान 10:25)
हिन्दू-ईसाई संस्कृति के तहत भारत में पला-बड़ा हुआ। जन्मदिन, नया साल, क्रिसमस, दिवाली के साथ-साथ ईद और बकरी-ईद मनाते हुए हर शुक्रवार को पिता के साथ जुमा मस्जिद नमाज़ पढ़ने जाना। एक मुस्लिम परिवार में पैदा हुआ था, लेकिन फिर भी कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने तक, मैं इस्लाम से पूरी तरह अनजान था, इस्लाम शब्द का अर्थ भी नहीं जानता था। लेकिन एक दिन, मेरे पिता के एक दोस्त कुरान जो की अंग्रेजी अनुवाद के साथ था हमारे घर में भूल गये और मैंने इसे पढ़ना शुरू कर दिया। मैं खुद नहीं जानता था कि उसके बाद क्या होने वाला है।
जब मैंने खुली आंखों के साथ कुरान का अध्ययन किया, तो यह पूरी तरह से एक नई दुनिया थी, मेरे स्कूल और कॉलेज के दिनों में मैंने जो कुछ पढ़ा था, उसका जादू तीथर भितर हो गया था। यह अब तक अज्ञानता में भटकने जैसा था और ज्ञान की असली जड़ें तो अब हाथ आईं थी।
अल्लाह की रहमत से, मैं झूठ की दुनिया से सत्य की दुनिया में था - संदहे से वास्तविकताओं में - अंधेरे से रोशनी में।
मुझे कुरान के पवित्र पृष्ठों में मानवता के दुखों का समाधान मिल गया था। हेगल, मार्क्स, आदि जैसे महान विचारक बच्चे दिखाई दे रहे थे। बल्की मुझे उनपर दया आ रही थी के जिन गुथीयों को सुलझाने में सारा जीवन लगा दिया और फिर भी सुलझा नही पाए उन्हें इस पुस्तक ने केवल एक या दो आयतों के मास्टर स्ट्रोक में हल कर दिया।
कुरान ने मेरे चारों ओर सबकुछ इतना शुद्ध और सुंदर बना दिया कि मैंने इस दुनिया की वास्तविकताओं को समझना शुरू कर दिया और पूरे ब्रह्मांड के एकमात्र मास्टर के रूप में अल्लाह की पहचान निर्विवाद रूप से मेरे सामने आ गई। जब मैंने इस पुस्तक को खोला था तो मुझे इस्लाम के बारे में कुछ नहीं पता था, लेकिन जब मैंने इसे बंद किया - तो मैं खुद को पहचान चुका था।
मेरी तम्मना है कि इस्लाम की रोशनी से अपने दिल को भरकर सभी इंसान अंधेरे और अज्ञानता से बाहर निकल आएं; जिसके बिना वे हमेशा नुकसान में रहेंगे और कभी भी उस आनंद और शांति को प्राप्त करने में सक्षम नही होंगे; वो जीवन की वास्तविक खुशी जो केवल एक सच्चे भगवान की पूजा से मिल सकती है।
अंत में मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि कोई भी सच्चा व्यक्ति, जो ईमानदारी से कुरान को समझने की कोशिश करेगा, निश्चित रूप से इस्लाम स्वीकार करेगा। रोशनी की इस जड़ तक पहुंचने के बाद वह अंधेरे में कभी नहीं रह सकता जबकि उसे मौका दिया गया हो
फिर से विचार करने का...
अल्लाह शांति के घर (स्वर्ग) को बुलाता है, और सीधी राह दिखता है जिसे वह चाहे। (कुरान 10:25)
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