Are our ancestors our Gods? / क्या हमारे पूर्वज हमारे भगवान हैं?
“Our ancestors knew nothing
about Islam, then should we not do as our fathers
did?”
If the ancestors had received
no revelation of the clear kind which a messenger brings; it should be a reason
for welcoming and not rejecting the Truth. We should feel honored, obliged and rejoice to receive
a message from God instead of opposing it.
“The story of inspiration is
false; it is merely an invention; we do not believe in inspiration”.
If the messenger who comes with
the Spiritual Truths is acknowledged to be a Truthful person in all the other
aspects of his life; why should he be false where his preaching would bring
him no gain but much sorrow, sufferings and persecution?
When the Truth does work wonders
in the hearts of those who accept it, they account for it by saying it is
magic.
What is magic? – A deception?
If it was merely a deception, surly Truth would have proved itself to be above
deception. But, the Prophet’s credentials were known by the test
of time and it became clear to the whole world with the victory of Islam in
Medina and latter in whole of Arabia and still progressing as the fastest
growing religion in the world.
We cannot simply follow
whatever our parents did and reject a Prophet of God, only because his
teachings do not agree with the ways of our ancestors.
The truth is completely opposite to what they say and
the verse in which Allah is answering them, is completely opposite to the
number of the chapter, is it a coincidence or a mathematical miracle of the
Qur'an..
Think again…
When Our Clear Verses are recited to them, they say:
“This (Muhammad) is only a man who wishes to hinder you from what your fathers
used to worship.” And they say: This (Qur’aan) is nothing but an invented
falsehood!” And the Unbelievers say of the Truth when it comes to them: “This
is nothing but evident magic!” (Al-Qur’aan Sura.34 Ayat.43)
क्या हमारे पूर्वज हमारे भगवान हैं?
"हमारे पूर्वजों को इस्लाम के बारे में कुछ भी नहीं पता था, क्या हमें
वैसा नहीं करना चाहिए जैसा कि हमारे पूर्वजों ने किया ?"
यदि पूर्वजों को स्पष्ट प्रकार का कोई ईश्वरीय संदेश नहीं मिला था, जो एक ईश्वर दूत लाता है; तो यह सत्य का स्वागत करने वाली बात है, अस्वीकार करने की नही। हमें इसका विरोध करने के बजाय परमेश्वर से संदेश प्राप्त करने के लिए
सम्मानित, बाध्य और आनन्दित महसूस करना चाहिए।
“ईश्वरीय प्रेरणा की कहानी झूठी है; यह केवल
एक आविष्कार है; हम प्रेरणा में विश्वास
नहीं करते”।
यदि आध्यात्मिक सत्य के साथ आने वाले दूत को अपने जीवन के अन्य सभी पहलुओं
में एक सत्यवादी व्यक्ति के रूप में स्वीकार किया जाता है; तो वह क्यों झूठ बोलेगा उस
उपदेश के बारे में जिससे उसे कोई लाभ नहीं बल्कि बहुत दुःख,
कष्ट और उत्पीड़न हो?
जब सत्य उन लोगों के दिल में अद्भुत काम करता है जो इसे स्वीकार करते हैं,
तो वे इसे जादू का नाम देते हैं।
जादू क्या है? - एक धोखा? यदि यह केवल एक धोखा था, तो वास्तव में सत्य ने
खुद को धोखे से ऊपर साबित कर दिया होता। लेकिन, पैगंबर की साख समय की
कसौटी से जानी जाती है और यह पूरी दुनिया के लिए स्पष्ट हो गया इस्लाम की जीत के साथ,
पहले मदीने में और फिर पूरे अरब में और फिर दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाले धर्म के रूप में।
हम बिना सोचे-समझे अपने बड़ों के बताये रास्ते पर चलकर भगवान के पैगंबर को
अस्वीकार नही कर सकते, सिर्फ इसलिये के उसकी शिक्षाएं हमारे पूर्वजों के तरीकों से नही मिलतीं।
जो वो कहते हैं सच उसका बिल्कुल उलट है और जिस आयात में अल्लाह उनका जवाब दे रहा है उसका नम्बर सूरा से बिल्कुल उलट है, ये कोई इत्तेफ़ाक़ है या क़ुरआन का गड़नीतिये चमत्कार..
फिर सोचें…
जब हमारी स्पष्ट आयतों को उन्हें सुनाया जाता
है, तो वे कहते हैं: "यह (मुहम्मद) केवल एक ऐसा व्यक्ति है जो आपके बाप-दादाओं के पूजा के तरीके से आपको रोकना चाहता है।" और वे कहते हैं: यह (कुरान) एक
घड़े हुए झूट के सिवा कुछ नही। "और काफ़िरों के सामने जब
सत्य की बात आती है: तो वह कहते हैं कि,
"यह जादू के अलावा और कुछ नही!"
(अल-कुरआन सूरा 34 आयात 43)
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