भगवान सभी को मजबूर क्यों नहीं करता?
ज़मानों से चलता आ रहा तर्क: यदि भगवान सशक्त है, तो वो सभी लोगों को अपनी इच्छा पर चलने के लिए मजबूर क्यूँ नहीं करता? यह मनुष्य को दी गई सीमित इच्छाशक्ति को अनदेखा करना है, जो की नैतिकता का पूरा आधार है। भगवान मनुष्य को चीजों को जानने और समझने का हर मौका
देता है, लेकिन वह उसे मजबूर नहीं करता,
क्योंकि यह पूरी योजना के खिलाफ होगा जिस पर हमारा वर्तमान जीवन गठित
किया गया है।
लोग अपने स्वयं के प्रतिबंध, बाधाओं और अंधविश्वासों को खड़ा करते हैं और उन्हें धर्म से जोड़ देते हैं। यह गलत है, और यह उन लोगों में अधिक है जो झूठे देवताओं की पूजा करते
हैं।
इस्लाम का संदेश स्पष्ट है जो सब चीजों को स्पष्ट करता है, उन के लिए जो समझना चाहते हैं, क्योंकि
यह भगवान द्वारा बनाई गई हमारी प्रकृति के अनुरोध है; खुले तौर पर और हर किसी के लिए।
भगवान की निशानियां प्रकृति में हर जगह मौजूद हैं और मनुष्यों के अपने दिल में भी, फिर भी भगवान ने मनुष्यों में मनुष्यों को
अपना दूत बनाया, लोगों को अच्छाई की तरफ बुलाने और उन्हें बुराई से रोकने के लिए। इसलिए, वे यह नहीं कह सकते कि भगवान
ने उन्हें त्याग दिया था या उसे परवाह नहीं कि वे क्या कर रहे हैं। उसकी दिव्य रहमत हमेशा हमें सही रास्ता चुनने के लिए आमंत्रित करती है।
जबकि कुछ लोग उसके मार्गदर्शन को स्वीकार करते हैं और अन्य बुराई के आगे आत्मसमर्पण कर देते हैं और बुराई उन पर पकड़ प्राप्त कर लेती है। उन्हें केवल
बीते समय की यात्रा करनी चाहिए और उन लोगों का अंत देखना है
जिन्होंने अपनी रोशनी त्याग दी और परवह नहीं की के वह
फिर से विचार करें…
झूठे देवताओं के उपासक कहते हैं:
"यदि अल्लाह चाहता, न तो हम
और न ही हमारे बाप दादाओं ने उसके अलावा किसी और की पूजा की होती, और न ही हमने उसकी आज्ञा के बिना किसी चीज़ को मना किया होता। तो यही उनसे पहले के लोग कहते थे। लेकिन दूतों का मिशन क्या है लेकिन
स्पष्ट संदेश का प्रचार करना? और वास्तव में, हमने सब लोगों के बीच एक दूत भेजा, (घोषणा के लिए): "अल्लाह की पूजा करें (अकेले),
और झूठे देवताओं से बचें (या दूर रहें)।" तब उनमें से कुछ को अल्लाह ने हिदायत दी, और कुछ पर भटकना न्यानुसार था। तो धरती के इतिहास की यात्रा करो,
और देखो कि उन लोगों
का अंत क्या हुआ जिन्होंने (सत्य) से इंकार किया था। (अल-कुरान सूरत 16 अयत
35-36)
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