क्या हमें आजादी मिल गई .. ??
अभी आजादी मिली कहाँ, काम अभी बाकी है,
दीन-ए-खिलफात का ऐहतराम अभी बाकी है..
क्या आप जानते हैं कि हमारे राट्रपिता महात्मा
गांधी ने इस्लामिक खिलाफत की सराहना करते हुए क्या कहा था, "मैं आपको राम चन्द्र
या कृष्ण का उदाहरण नहीं दे सकता, क्योंकि उनके बारे में ऐतिहासिक आंकड़े मौजूद नही
हैं। मैं मजबूर हुँ लेकिन आपको अबू बकर (पहले खलीफा) और उमर (दूसरे खलीफा) के नाम ही
पेश कर सकता हूं। वे विशाल साम्राज्य के नेता थे, फिर भी वे तपस्या का जीवन जीते थे।
बापू ने एक बार ये भी कहा था कि "यदि भारत को उमर-इब्न-खतताब जैसा आदमी मिल जाता
है तो सभी समस्याओं का समाधान हो जाएगा।" (स्रोत: विकिपीडिया)
यह पैगंबर मुहम्मद (शांति हो उन पर) द्वारा स्थापित,
समानता, न्याय और शांति की एक प्रणाली थी और जिसके द्वारा उनके सही निर्देशित साथी
(खुल्फा-ए-राशेदीन, अल्लाह उनसे खुश रहे) ने शासन किया और यह वह प्रणाली थी जिसके लिए
अल्लामा इकबाल (वह व्यक्ति जिसने "सारे जहां से आच्छा हिंदुस्तान हमरा" लिखा
था) ने खूबसूरती से पुकारा : -
मेरी जिंदगी का मक्साद तेरे दीन की सरफाराज़ी,
मैं इसीलिए मुसलमा मैं इसीलिए नमाज़ी...
यदि हम धर्म को राज्य से अलग रखते हैं और अपने
रब्ब के बजाय मनुष्यों को कानून निर्माताओं के रूप में लेते हैं, तो फिर यही होना लाज़िम
है।
समलैंगिकता (homosexuality) जो कि लगभग बीस से
तीस साल पहले दुनिया के लगभग सभी देशों में अपराध था, अब न केवल पश्चिम और यूरोप के
कई देशों में वैध है बल्कि वे अन्य देशों पर भी इसे वैध करने के लिए दबाव डाल रहे हैं।
यदि आज, उनके बहुसंख्यक संसद के दो तिहाई लोग
थोड़ा और नीचे गिर कर यह तय करते हैं कि जानवरों के साथ यौन संबंध रखने में कुछ भी गलत
नहीं है, तो वे इसे भली भांति वैध बना सकते हैं। वह जो कुछ करना चाहतें है, उसके बारे
में उन्हें किसी सीमा की आवश्यकता नहीं और इसीलिए इस्लाम में संप्रभुता (sovereignity)
की ऐसी प्रणाली मान्य नहीं है।
कुरान स्पष्ट रूप से अल्लाह को अल-मलिक के रूप
में वर्णित करता है जिसका अर्थ सार्वभौमिक (sovereign) और अल-मलिक-उल-मुल्क सार्वभौमिक
का अनंत अधिकारी (Possessor of Eternal Sovereignity) हैं।
जो कुछ भी आसमानों और ज़मीन में है उसका और उसके
अधीन है और केवल उसके नियंत्रण में है। वह हमारा भगवान और प्राथमिक कानून देने वाला
है, इसलिए मनुष्य या मनुष्यों का समूह अन्य मनुष्यों पर क़ानूनकर्ता नहीं हो सकते।
अल्लाह कुरान में कहता है कि सभी इंसान पृथ्वी
पर उनके वाइसरॉय हैं और उनमें से एक नेता होना चाहिए (एक खलीफा - सबसे पवित्र) जो कुरान
और सुन्नत (पैग़म्बर मोहम्मद के शिक्षण) से प्राप्त नियमों के संरक्षक में कार्य करेगा।
खालिफा के पास अधिकार और शक्तियां होती हैं और
वह अपने अधिकारियों को न्याय और शांति का प्रशासन करने के लिए इस प्राधिकरण से आगे
भेजता है, जो बदले में केवल इस्लामी कानूनों (शरिया) के कार्यान्वयन और प्रवर्तन के
लिए आवश्यक मामूली स्वतंत्रता का प्रयोग करते हैं।
शरिया की सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक व्यवस्था जो
इस्लाम का मूल है आज दुनिया में कहीं भी नहीं है।
पाकिस्तान और बांग्लादेश के गठन में इतने सारे
लोग मारे गए, लेकिन अगर इन देशों पर अल्लाह का दीन लागू नहीं किया गया तो उन्हें प्राप्त
करने में क्या अच्छा था? इतना खून देने के बाद, फिलिस्तीन और कश्मीर के लोग क्या पता
के अपनी आज़ादी पा सकें या नही, लेकिन अगर उनपर भी लोकतंत्र ही लगाया जाता है तो इसका
क्या उपयोग होगा।
इस्लाम को छोड़कर कोई भी अन्य धर्म शासन की व्यवस्था
नहीं लाता है और यही कारण है कि यह उनके लिए कल भी एक खतरा था और आज भी है। इसे पहले
भी कुचला जा चुका है और वे आज भी इसे कुचल रहे हैं, चाहे वह अफगानी तालिबान (आतंक के
खिलाफ या शरिया के खिलाफ युद्ध ..?) द्वारा इतने सालों से उनके साथ लड़ने के बाद हासिल
किया गया हो या उन्ही की परणाली के अनुसार जीतने के बाद मिस्र के राष्ट्रपति मोहम्मद
मोर्सी द्वारा लगाया गया हो।
मोर्सी ने एक नए संविधान के मसौदे को प्रभावित
करने की मांग की थी जो नागरिक अधिकारों की रक्षा करता हो और इस्लामी कानून को स्थापित
करे। (स्रोत: विकिपीडिया)
अगर हम शरिया के लिए प्रयास नहीं करते हैं जिसमें
हमारा अपना ही फायदा होता है; तो ये लोग अल्लाह के आदेशों के विपरीत सिस्टम में नीतियों
लाएंगे और यह न केवल हमारे देश के लिए बल्कि पूरी मानवता के लिए बहुत हानिकारक और खतरनाक
हैं।
उदाहरण के लिए, कुरान स्वेच्छा से दान देने के
लिए प्रोत्साहित करता है और उन लोगों के खिलाफ युद्ध की घोषणा करता है जो ब्याज का
कारोबार करतें हैं जबकि इन लोगों ने ब्याज को हमारे वित्तीय संस्थानों की रक्त धारा
का रूप दे दिया है।
पहले किसानों को बढ़ते ब्याज की वजह से ज़मीदारों
ने गुलाम बना रखा था अब विश्व बैंक और आईएमएफ इसी तरीके से देशों को गुलाम बनाते हैं।
कोई भी समझदार व्यक्ति यह समझ सकता है कि यदि
पैसा उधार देने पर पैसा कमाया जाएगा तो यह न केवल दान देने की वेवस्था को सूखा देगा
बल्कि संपत्ति जमाकर्ताओं और रक्त चूसने वाले लोगों को जन्म देगा जो कुछ नही करेंगे
सिवाय अंतर बढ़ाने के अमीर और गरीब के बीच का, जिसको इस्लाम ज़कात के सिद्धांत से कम
करने की कोशिश करता है।
ज़कात हमारी बचत (savings) पर 2.5% कर (tax) है
यदि एक साल के लिए बचाया गया हो, जबकि इस्लाम में कोई आयकर (income tax) नहीं है लेकिन
ये लोग आय (income) पर कर (tax) लगाते हैं और हमारी बचत (savings) पर रिटर्न (सूद)
देकर इसका बिल्कुल विपरीत करते हैं।
और सबसे नया उदाहरण मुद्रा परिवर्तन (demonetization)
का है। इस्लाम का कहना है कि पैसा वास्तविक धन होना चाहिए, जबकि इन्होंने पेपर मुद्रा
की प्रणाली पेश की जिसका मतलब है कि किसी भी मुद्रा को किसी भी समय दुनिया में कहीं
भी कागज में बदला जा सकता है। हमने ऐसा अपने देश में, इराक और अफगानिस्तान में भी देखा
है।
भविष्य में भी आप देखेंगे कि अगर शरिया की व्यवस्था
फिर से उठने की कोशिश करती है तो वे अपने पूरी ताकत लगा देंगे, लेकिन ईमान वालों के
पास संघर्ष (जिहाद) करने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है, ताकि इस तरह की प्रणाली
को हासिल किया जा सके ताकि खुद की और साथ ही मानव जाति की भी रक्षा की जा सके।
लेकिन आतंकवाद या आत्मघाती बम विस्फोटों के माध्यम
से नहीं, निर्दोष लोगों को मारने के साधनों से नहीं, युद्ध, हथियार या हिंसक विरोध
के माध्यम से नहीं; लेकिन जिस तरह से हमारे पैगंबर को करने का आदेश दिया गया था, जिस
तरह से उन पर विश्वास करने वाले सभी लोग करते थे और जो लोग उन पर अब विश्वास करते हैं
उन्हें करना चाहिए के अल्लाह के प्रकाशन को फैलाये और उसे आम करें - अल्लाह के शब्दों
को हथियार बनाये और उसके नोबल क़ुरआन का प्रमोशन करें - यही है जिहादे कबीरा (सबसे बड़ा
जिहाद)।
लोकतंत्र (लोगों का कानून) शरीयत (अल्लाह के कानून)
के बिल्कुल विपरीत है और इससे लड़ने का आदेश देने वाली सूरत और आयात की संख्या भी एकदम
आपस में विपरीत हैं, क्या यह सिर्फ एक इत्तिफ़ाक़ है या हमें चाहिए कि हम
फिर से विचार करें...
तो काफिरों की न सुनें (हे मुहम्मद), लेकिन उनके
खिलाफ (जिहादन कबीरा) अत्यधिक प्रयास करें (कुरान के साथ)। अल कुरान सूरा नं .25 आयात.
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