किसके हाथ में है हमारी तक़दीर..?
सारी प्रकृति अल्लाह की भलाई का प्रचार करती है। उसके अस्तित्व का सबूत हमारे चारों ओर बिखरा हुआ है। न केवल उसने जोड़े में चीजें बनाई, बल्कि उन्हें सबसे खूबसूरत फ़र्क़ दिया।
उदाहरण के लिए सूर्य और चंद्रमा को देखें। गौरवशाली सूर्य दिन के दौरान हमारे प्रकाश का स्रोत है, और चंद्रमा रात के दौरान अपनी चमक के साथ चमकता है। दोनों एक जोड़ी बनाते हैं लेकिन एक दूसरे से उनकी रोशनी कितनी अलग है।
अगली जोड़ी रोशनी की नहीं है, लेकिन उसकी अनुपस्थिति और उपस्थिति के कारण होने वाली स्थितियों यानी दिन और रात की है। दिन सूर्य की महिमा को प्रकट करता है, जबकि रात इसे हमारी दृष्टि से छुपाती है। दोनों समय की अवधि हैं लेकिन फिर भी एक-दूसरे से कितनी अलग हैं।
और फिर पृथ्वी और आकाश, एक हमारी कल्पना से बहुत दूर तक फैला हुआ हैं, और दूसरा एकदम हमारे पैरों के नीचे। एक कितना दूर और दूसरा कितनी करीब। क्या आश्चर्यजनक विपरीत है।
लेकिन सबसे अधबुद् विपरीत हमारी आत्माओं में मौजूद है। ईश्वर ने आत्मा को बनाया, और इसे एक विशेष परिस्थिति के अनुकूल ढालने के क्रम में एक तरीका, अनुपात और सापेक्ष पूर्णता दी, जिसमें इसे अपना जीवन जीना है। उसके बाद उसने पाप, अशुद्धता, गलत काम और पवित्रता और सही आचरण क्या है की समझ इसमें फूंक दी।
सही और गलत (हमारे अंदर का विपरीत) के बीच अंतर करने का यह संकाय मनुष्य के लिए भगवान का सबसे मूल्यवान उपहार है। ईश्वर की भलाई का यह आंतरिक सबूत उसके कमजोर प्राणी पर अपने ताकतवर निर्माता द्वारा दिए गए सभी आशीर्वादों में से सबसे बड़ा है।
इसलिए, मनुष्य को यह जानना चाहिए कि उसकी सफलता, उसकी समृद्धि, उसका उद्धार और उसकी विफलता, उसकी गिरावट; उसका विनाश स्यवं उसपर निर्भर है। मनुष्य की स्वतंत्र इच्छा का कोई अर्थ नही है, सिवाए इसके के वो अपनी आत्मा को शुद्ध रख्खे जैसा कि भगवान ने इसे बनाया है - या फिर इसे भ्रष्ट कर दे।
ज़रा फिर सोचें…
सूर्य और इसकी महिमा की (कसम); चंद्रमा की कसम जो इसके(सूर्य) के बाद आता है; दिन की कसम जो दिखाता है (सूर्य की) चमक; रात की कसम जो इसको(सूर्य को) छिपाती है; आसमान और उसे बनाने वाले की कसम; पृथ्वी और उसको फैलाने वाले की कसम; कसम आत्मा की और जिसने उसे बेहतरीन बनाया (सही अंदाज़ से) उसकी; फिर उसने इसे बताई सही और गलत की तमीज़ - वास्तव में वही सफल है जो इसे पाक करे, और वही विफल है जो इसे बर्बाद करे! (अल-कुरान 91:1-10)
सारी प्रकृति अल्लाह की भलाई का प्रचार करती है। उसके अस्तित्व का सबूत हमारे चारों ओर बिखरा हुआ है। न केवल उसने जोड़े में चीजें बनाई, बल्कि उन्हें सबसे खूबसूरत फ़र्क़ दिया।
उदाहरण के लिए सूर्य और चंद्रमा को देखें। गौरवशाली सूर्य दिन के दौरान हमारे प्रकाश का स्रोत है, और चंद्रमा रात के दौरान अपनी चमक के साथ चमकता है। दोनों एक जोड़ी बनाते हैं लेकिन एक दूसरे से उनकी रोशनी कितनी अलग है।
अगली जोड़ी रोशनी की नहीं है, लेकिन उसकी अनुपस्थिति और उपस्थिति के कारण होने वाली स्थितियों यानी दिन और रात की है। दिन सूर्य की महिमा को प्रकट करता है, जबकि रात इसे हमारी दृष्टि से छुपाती है। दोनों समय की अवधि हैं लेकिन फिर भी एक-दूसरे से कितनी अलग हैं।
और फिर पृथ्वी और आकाश, एक हमारी कल्पना से बहुत दूर तक फैला हुआ हैं, और दूसरा एकदम हमारे पैरों के नीचे। एक कितना दूर और दूसरा कितनी करीब। क्या आश्चर्यजनक विपरीत है।
लेकिन सबसे अधबुद् विपरीत हमारी आत्माओं में मौजूद है। ईश्वर ने आत्मा को बनाया, और इसे एक विशेष परिस्थिति के अनुकूल ढालने के क्रम में एक तरीका, अनुपात और सापेक्ष पूर्णता दी, जिसमें इसे अपना जीवन जीना है। उसके बाद उसने पाप, अशुद्धता, गलत काम और पवित्रता और सही आचरण क्या है की समझ इसमें फूंक दी।
सही और गलत (हमारे अंदर का विपरीत) के बीच अंतर करने का यह संकाय मनुष्य के लिए भगवान का सबसे मूल्यवान उपहार है। ईश्वर की भलाई का यह आंतरिक सबूत उसके कमजोर प्राणी पर अपने ताकतवर निर्माता द्वारा दिए गए सभी आशीर्वादों में से सबसे बड़ा है।
इसलिए, मनुष्य को यह जानना चाहिए कि उसकी सफलता, उसकी समृद्धि, उसका उद्धार और उसकी विफलता, उसकी गिरावट; उसका विनाश स्यवं उसपर निर्भर है। मनुष्य की स्वतंत्र इच्छा का कोई अर्थ नही है, सिवाए इसके के वो अपनी आत्मा को शुद्ध रख्खे जैसा कि भगवान ने इसे बनाया है - या फिर इसे भ्रष्ट कर दे।
ज़रा फिर सोचें…
सूर्य और इसकी महिमा की (कसम); चंद्रमा की कसम जो इसके(सूर्य) के बाद आता है; दिन की कसम जो दिखाता है (सूर्य की) चमक; रात की कसम जो इसको(सूर्य को) छिपाती है; आसमान और उसे बनाने वाले की कसम; पृथ्वी और उसको फैलाने वाले की कसम; कसम आत्मा की और जिसने उसे बेहतरीन बनाया (सही अंदाज़ से) उसकी; फिर उसने इसे बताई सही और गलत की तमीज़ - वास्तव में वही सफल है जो इसे पाक करे, और वही विफल है जो इसे बर्बाद करे! (अल-कुरान 91:1-10)
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